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"कई दिन हो गए है तुझसे मिले हुए"

"कई दिन हो गए है तुझसे मिले हुए"

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कई दिन हो गए हैं तुझसे मिले हुए 

अब तो ख़याल में भी नहीं आती हो

जैसे कोई तिलिस्मी बंदिश लगा रखी हो 

इससे बड़ी सज़ा क्या होगी आख़िर

कि तुम्हें सोचना तो चाहता हूँ

मगर सोच नहीं पाता हूँ

खुद को हर शब ख़्वाब में

फिर उसी जगह पाता हूँ

मिले थे जहाँ कभी हम आख़िरी बार

और अब आलम ये है कि

वो ख़्वाब तक नहीं आते है

चाहे जितनी भी कोशिश मैं करू

तुम्हारे लिए आसां है शायद, भुलाना मुझे 

मगर मेरी तो हर साँस में

तुम ही तुम बसी हो

पता नहीं ये क्या है  

मगर जो भी है यही है  

पता नहीं ये क्यूँ है

मगर जो भी है यही है

इतना जरूर पता है

ये जो भी है बेवजह नहीं है  

कई दिनों से छुपा रखा था मैंने इसे

मगर कल जब वो बारिश हुई

तभी कहीं सीने की क़ैद से फिसलकर

वो अहसास चुपके चुपके से

कागज़ की कश्ती पर सवार हो गया

ताज्जुब इस बात का नहीं  

कि तुम्हें इसकी खबर नहीं 

ताज्जुब इस बात का है

कि दिल को इसकी खबर होते हुए भी

ये दावा करता रहा

कई दिनों तक बेखबर होने का  

इसे क्या पता

तुम्हारा मेरा और बारिश का रिश्ता क्या है   

गर पता होता तो ये सवाल ना आता 

इसकी जगह कुछ अश्क़ छलक आते 

लरजते दामन में जिनके

नज़र आती फिर वो अधूरी गुज़ारिश मेरी

कई दिन हो गए है तुझसे मिले हुए 

अब तो ख़याल में भी नहीं आती हो ।।    

 


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