खयाली पुलाव
खयाली पुलाव
चलिए आज खुशियों की, बारात सजाते हैं,
सब याद करेंगे ऐसी, अनूठी दावत करवाते हैं,
साँसों के चूल्हे पर, यादों के चावल सिंझाते हैं,
आइये आज मिलकर, ख्याली पुलाव पकाते हैं।
मन के आंगन में, प्रेम की खटिया बिछाते हैं,
राग- द्वेष भूल कर, आइये उसपर बैठ जाते हैं,
फिर खुद को बच्चा कर, तोता-मैना उड़ाते हैं,
आइये मैं को छोड़ कर, फिर से हम बन जाते हैं।
आइये आज मिलकर, ख्याली पुलाव पकाते हैं…..
अभी ज़ायके घुल रहे है, इसे थोड़ा और बढ़ाते है,
चलिए साथ मिल कर, इसका लुत्फ उठाते हैं,
बारी बारी सब कोई, किस्सों की कड़छी हिलाते है,
आइये आज फिर से, एक ही थाली से कौर उठाते हैं।
आइये आज मिलकर, ख्याली पुलाव पकाते हैं…..
हसरते दावत को अभी, और लज़्ज़तदार बनाते है,
बैठिए सबको मीठे में, वो इतवार याद दिलाते हैं,
चलिए आज खलिहान से, फिर आम तोड़ लाते है,
पुआल पर ससरते हैं, फिर समय का लट्टू घुमाते हैं।
आइये आज मिलकर, ख्याली पुलाव पकाते हैं….