ख्वाईश
ख्वाईश
दूर जब से खुशी हो गई है
दर्द से आशिक़ी हो गई है
ज़िन्दगी तिश्नगी हो गयी है
अब खुशी अजनबी हो गई है
जबसे आए हो तुम ज़िन्दगी में
खुशनुमा ज़िन्दगी हो गई है
मेरा मज़हब सुख़न हो गया अब
शायरी बन्दगी हो गई है
शब चली आंख मलते हुए
ग़मज़दा चांदनी हो गई है
सुब्ह आई लिए रोशनी को
ख़त्म अब तीरगी हो गई है
सूना सूना पड़ा घर का आंगन
जब से रुख़सत परी हो गई है
उम्र छोटी थी,ख्वाईश भी छोटी
अब वो ख्वाईश बड़ी हो गई है।