ख़्वाब
ख़्वाब


ख्वाब आज मेरी मर गई
शाम सवेरे कुछ न बोली
मेरी सारी खुशियां लुट गई
मुझे पिया बोलती थी कभी
लेकिन, यार देख बदल गई
ख्वाब आज मेरी मर गई !
खुद ही ख्वाब में आती थी
रातों को चाँदनी बनाती थी
लिपटी थी कभी सीने से मेरे
ख़ूब खेलती थी कभी रूह से
आंखों में थोथा इंतजार दे गई
ख्वाब आज मेरी मर गई !
रोज की आदत खराब कर गई
दिल की हवेली बर्बाद कर गई
इश्क का चादर दाग़दार कर गई
आज एक मुसाफ़िर ठहरा गई
ख्वाब आज मेरी मर गई !
उसके रात-सा मोहब्बत में
चांद अमावस में पड़ गया
मोहब्बत में उसके आज फ़िर
कई हाथ आपस में उलझ गया
ख्वाब आज मेरी मर गई !
अब उसके मोहब्बत में
साजिश की बू आती है
इश्क़ में उसका लिपटना
अब रोज की ड्यूटी हो गई
आसमां भी आज बेचैन है
बादल से खेलना उसका अब
रोज की आदत हो गई
ख्वाब आज मेरी मर गई।