ख्वाब और जिंदगी
ख्वाब और जिंदगी
कुछ ख्वाब लेकर पोटली में,
टांग कर कांधे पे अपने
निकली------- जीवन के सफर पर,
सफर में दुश्वारियां;
कुछ यूं
पेश आती रहीं------
खिसकने लगे----- सपने------
गिरते गए, निकलकर,
टूटते गये,
और
मैं बेखबर सी------ आगे बढ़ती गई-----
खबर जब तक लगी
सपनों के टूटने की,
कुछ ही सपने शेष थे-------
झिल मिला रहे थे, जगमगा रहे थे,
दिल की पोटली में
" जो शेष हैं------ वही विशेष है"-----
साथ ले ------- ये फलसफा
टूटे सपनों की,
किरचियां बीन कर
कुछ नये ख्वाब
बुने मैंने
चाहतों की पोटली में
सहेज कर,
चल पड़ी हूं---------
फिर से------- जिंदगी की
लंबी सड़क पर
जुगनूओं से
टिमटिमाते
सितारों से झिलमिलाते
सपने
साध लेकर
दूर कहीं दूर
बहुत दूर---