खुशियो भरी सुबह
खुशियो भरी सुबह
खुशियों भरी सुबह फिर मुस्कुराएगी ,
रेल पटरी की जिंदगी पर फिर दौड़ लगाएगी,
छुक - छुक कर चलेगी फिर ,
खिड़की से वो झांकेगी ,
मुस्कुराते चेहरो में जिंदगी फिर मुस्कुराएगी ।
उठेगी सुबह फिर अलार्म की आवाज से ,
रसोई में खौलेगी चाय मां की एक आवाज पे,
कटोरिया टिफिन की फिर शोर मचाएंगी,
प्यास बोतलों में पानी बन भर जाएंगी,
घंटियां स्कूल की फिर टनटनाएगी ।
पीठ पर उठाए खुशियों का बस्ता,
किताबों और कॉपी संग खेलता हंसता ,
बचपन फिर दौड़ लगाएगा,
दौड़ेगी नई उम्र की बयार,
कॉलेज में फिर बहार आ जाएगी ।
कैंटीन में चाय समोसे पर कहानियां नयी लिखी जाएगी,
खुशियों भरी सुबह फिर मुस्कुराएगी ।
फिर पंक्तियों में खड़ी होगी जिंदगी,
टिकटों संग सफर करेगी जिंदगी ,
मेट्रो और बस में फिर चढ़ेगी चर्चाएं,
सुर्खियां अखबारों की हाथों से फिर गुजरेगी,
काम फिर ऑफिस के हिस्से,
कुछ गॉसिप और कुछ अनसुने किस्से,
थोड़ी बातें इधर उधर की,
फिर बिखर जाएंगी,
जिंदगी फिर मुस्कुराएगी ।
थक कर शाम घर में सिमट आएगी,
घर के हिस्से फिर आराम आएगी,
बातें दिन भर की , फरमाइशें बच्चों की ,
कुछ शिकायतें , कुछ उलाहने ,
चाय की प्यालियों में फिर डूबकी लगाएगी ,
खाना खाने के बाद रात फिर टहलने जाएगी,
जिंदगी फिर मुस्कुराएगी ।
न मास्क की होगी पाबंदी ,
ना सेनेटाइजर साथी होगा ,
बीती बातों का वो फिर हिस्सा होगा ,
याद करेंगे हम इस दौर को ,
दौर फिर ये एक किस्सा होगा ,
कुछ यूं मुस्कुराएगी खुलकर फिर जिंदगी,
खुलकर सांस लेगी फिर जिंदगी ,
धूप आजादी की फिर खिल जाएगी ,
दिवारों मे कैद ज़िन्दगी जब बाहर फिर आएगी ,
खुशियों भरी सुबह फिर मुस्कुराएगी ।