खुशी पे हक
खुशी पे हक


मेरी मां 20 बरस की ही थी
की मेरे पापा की मृत्यु हो गई
उस वक्त में माँ के गर्भ में ही थी
मैंने अपने पापा को देख भी नहीं
पर माँ ने मुझे माँ और पापा दोनों का
प्यार दिया और काबिल डॉक्टर बनाया
अब मेरी शादी हो जायेगी
तो माँ अकेली हो जायेंगी
ये सोचकर मैं माँ की
शादी कराना चाहती थी
मैंने उनके लिये कई लड़के देखे
पर वो हमेशा कहती
तुम्हारा दिमाग ख़राब है
फिर मुझे एक अंकल
मिले उन्होंने बताया वो उन्हें पिछले
10 सालो से पसंद करते है
पर कभी कह नहीं पाये
मैंने उनका साथ दिया
उन्होंने माँ को अपने दिल की
बात बताई माँ ने कहा
शादी तो नहीं हाँ दोस्त बन सकते है
धीरे धीरे दोस्ती प्यार में बदली
और दोनों एक दूसरे के इतने
करीब है जब इस बात का
एहसास दोनों को हुआ तो
इस उम्र में लोग क्या कहेंगे
ये भूलकर दोनों ने दिल की सुनी
और शादी कर ली
मेरी माँ को उनके हिस्से की
खुशियाँ मिल गई