खुदा से मांगी
खुदा से मांगी
खुदा से मांगी दुआ
तेरी सलामती की कई दफ़ा।
तेरे इकरार से रहे महरूम
तेरा इंकार भीनज़र नहीं आता।
ज़माने ने दिएगम बहुत
ठोकर भी खाईबेपनाह।
फ़कत शिक़वा रहा यही
बुत-ए-काफ़िर नज़र नहीं आता।
ऐतबार करें भी तो किस पे
कोई यार मिला न हमराज़।
खुलुसे-ए-पलमिले कैसे
महबूब कोई नज़र नहीं आता।
माना मुहब्बत नहीं है मज़बूरी
बिना सहारे भी चलते हैं लोग।
हंसी को नज़रें इनायत वो समझे
फरेब-ए-हस्ती नज़र नहीं आता।
बदलते दौर ने दोस्ती के
मायने भी बदल दिये।
यार करने लगे दिल पे वार
दो शरीर एक जान
कोई नज़र नहीं आता।