खुद से दुश्मनी
खुद से दुश्मनी
दुश्मनी हमारी खुद से है,
खुद के वजूद बचाने से है
कितनें डराएंगे गम-दरिया
लड़ाई खुद की लहरों से है
सँघर्ष हमारा शूलों से है
दुश्मनी हमारी खुद से है
यह ज़माने के प्रपंच,
क्या रोकेगें हमारा मंच
ये नसीब बुलबुलों से है
ये भाग्य श्रम बूंदों से है
मर मिटेंगे,झूठ न सहेंगे
भीतर की लौ सूर्य से है
चलेंगे लहरों के विपरीत,
मंजिल जो जलजलों से है
दुश्मनी हमारी खुद से है
चुनौती जग-दलदल से है
हम कमल जरूर बनेंगे,
हमारी नजर नभ से है
भीतर के शत्रु भीतर मारेंगे,
ये साखी जलते दीपक से है!