खत
खत
संकरी गलियों को ही नापते रहोगे
तो चौराहे पर कैसे आओगे।
तिनकों से जाल बुनते रहोगे तो,
नई इबारत कैसे लिखोगे।
आंसुओं से लिख रहे थे खत उन्हें
पढ़ न पाया कोई, उनके सिवा उन्हें।
संकरी गलियों को ही नापते रहोगे
तो चौराहे पर कैसे आओगे।
तिनकों से जाल बुनते रहोगे तो,
नई इबारत कैसे लिखोगे।
आंसुओं से लिख रहे थे खत उन्हें
पढ़ न पाया कोई, उनके सिवा उन्हें।