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Mamta Singh Devaa

Inspirational

4  

Mamta Singh Devaa

Inspirational

" खरी - खरी "

" खरी - खरी "

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मेरे खरे पर सब ख़ाक हो जाते हैं

सच सुन के जल कर राख हो जाते हैं,


अपने कहे को ज्यादातर नकार जाते हैं

सारा झूठ चुटकियोंं में डकार जाते हैं,


घड़ा मैं बनाती हूँ चिकने वो हो जाते हैं

जब देखो हर बात पर फिसल जाते हैं,


मेहनत कर-कर के पसीने हम बहाते हैं

वो एलीट और हम कुम्हार कहे जाते हैं,


वो कद्र हुनर की नहीं दौलत की करते हैं

जाते वक्त तो सब ख़ाली हाथ ही रहते हैं,


धन की लालच में आपस में उलझते हैं

हमारे क़फ़न में जेबें नहीं होती भूलते हैं,


माँ - बाप के बुरे कर्म बच्चे ही भुगतते हैं

बच्चों के अच्छे कर्म से माँ - बाप तनते हैं,


कर्मों को बिसरा सब शान से रहते हैं

द्रव्य को दवा समझने की भूल करते हैं,


उपर कोई माया का बैंक नहीं होता है

वहाँ तो बस कर्मों से खाता खुलता है 

वहाँ तो बस कर्मों से खाता खुलता है।


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