ख़्याल
ख़्याल
ख्यालों में ढूँढती थी उसे
जिससे बेपनाह इश्क़ कर बैठी थी
हर दुआ में उसे ही माँगती हूँ
जिसे अपनी ज़िंदगी का हिस्सा मान बैठी थी
अपनी ज़िंदगी की किताब के पहले अक्षर को
तेरे नाम से शुरू कर बैठी थी
मुझे लिखने का शौक उसी दिन से हो गया
जिस दिन में कलम में स्याही भर बैठी थी!