"खेल मैदान"
"खेल मैदान"
मैं दोस्तों एक बदनसीब खेल मैदान हूं
आजकल रहने लगा मैं बड़ा परेशान हूं
ब्लॉकस्तरीय प्रतियोगिताएं शुरू हुई है
उन ग्रामीण खेलो का में अभयदान हूं।
मुझे चूमकर,लगाते जो माटी माथे पर
उनको ही दे रहा,जख्म,घाव महान हूं
रखरखाव अभाव से हुआ,शूलबाण हूं
खिलाड़ियों के पैरों के ले रहा जान हूं।
कबड्डी,सितोलिया,मारदड़ी,खेल थे,मेरे
अब मोबाइल से कत्ल हुआ,इंसान हूं
बता रहा,अपनी दुःखभरी दास्तान हूं
में दोस्तों एक बदनसीब खेल मैदान हूं।
कटा,फटा,छिला इसका गम नही है,
अपने भूले,बहा रहा अक्षु अविराम हूं
अपनो के द्वारा सताया हुआ,जहान हूं
अपनों के बेरुखी से हुआ,लहूलुहान हूं।
गर मन,सरकार की व्यवस्थाएं सुधरे
में भी बन जाऊं,हंसता खलिहान हूं
भला हो,इस खेल प्रतियोगिता का,
जिसके कारण जिंदा हुआ,तूफान हूं।
खेल खेलों,एकदिन नही रोज खेलों
अन्यथा,अपनों में पराया मेहमान हूं
तुम्हारे स्वास्थ्य में फूंक दूंगा,जान हूं
मैं स्वप्नों को पंख लगाने का स्थान हूं।
मोबाइल छोड़ो,मैदान से ज़रा जोड़ों
तुम्हे बना दूंगा,मैं एक सफल इंसान हूं
क्या हार्दिक,क्या नीरज,क्या,निकहत,
खेल मैदान हूं,उन्नति का देता दान हूं।
जो बहाते पसीना रोज,मेरे शरीर पर
उनके लिये,एक जगमगाता आसमान हूं
जिनके लिये मैं भू न,पवित्र कर्म राम हूं
उनको देता, मैं तो नित सफ़लता आम हूं।
उनके लिये,कम नही,मैं पूजा स्थान हूं
जो मानते,मैं उनकी जिंदगी की शान हूं
मेरी गोद मे ही गुजरा,जिनका बचपन,
मे उनके लिये मां के अंक का समान हूं।