खामोशी
खामोशी
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मेरी खामोशी
अनगिनत भाव समेटे
दिल की अलमारी में सहेजे,
जब भी खोलती हूँ
दिल की अलमारी
बस हर बार वही
केवल वही पत्र
नज़रों के सामने
आ जाता है
बिना सम्बोधन
लिखा पत्र।
एक-एक शब्द
मानो दिल में
बस से गए हैं
बिना पेज पलटे
बंद आँखों से
पढ़ जाती हर बार।
खामोश निगाहे
खामोश साँसे
धीरे से मन के
कोने में दबा
आँसू पौंछ
बंद कर देती हूँ
दिल का दरवाजा
सहेज लेती हूँ
उस पत्र को
जो लिखा
मगर डाला नहीं....
टपकते आँसू
गहराती खामोशी
मैं और मेरा दिल
अक्सर यूँ ही बाते करते।