खामोशी की आवाज़
खामोशी की आवाज़


खामोशी की आवाज़
सुनी है कभी
बहुत मुखर होती है
जब सब चुप होता है
तो ये बोलती है
धीमे से सुनना,
चुप रह कर सुनना
हौले से होठों का हिलना,
कुछ कहने की चाह में
पर कह न पाना
नज़रे उठ कर जो झुकी
लाखों बातें कह गईं
कभी सुना तुमने उन कोरे
आँखों की ज़ुबान को
लालिमा सी घिर आई थी
गालों पर
जब तुम्हें सोचा भर था
उंगलियाँ उलझ पड़ी थी
तुम्हारी खुश्बू से
क्या सुनी थी तुमने कभी वो
मूक सी चूड़ियों की खनखनाहट
सपनों को मेरे मेरी आँखों में देखना
होठ जब थिरके तब इनका नृत्य देखना
उलझी लटों में खुद को टटोलना
कभी जो वक़्त मिले तो मेरे मौन को
मुखर करना