ख़ामोश सफर
ख़ामोश सफर


बेज़ुबां ही - ये बात होती है,
रूह गुंचे का जिस्म होती है।
सब्र का - इम्तिहान होती है,
वो जगह तेरी बज़्म होती है।
रोशनी सिर्फ ख़्वाबों में रही,
रात भी अब ख़त्म होती है।
यूं ही हाथ उठाए सजदे में,
बंदगी - अब रस्म होती है।
एक ख़ामोश सफर होती है,
ज़िंदगी जब ज़ख्म होती है।