खामोश रिश्ता
खामोश रिश्ता
ख़ामोशी भी एक तरह की सहमति है
मैं चुप रहकर तेरे जाने को रोक न सका
मजबूरी का रोना हम दोनो ने रोया
समाज की रीत, परिवार की इज़्ज़त
मजबूरियं दोनों ने गिनाई
ख़ामोशी ज़हर की तरह फैली
प्यार का खिलना नामुमकिन था
हम थे तो आमने –सामने
लेकिन ख़ामोशी की एक खाई सी
हमारे बीच पट्टी रही
एक सवाल
कभी जो कानों में शौर करता है
क्या प्यार नहीं है ?
हम दोनों के दरमियाँ
फिर एक लंबी ख़ामोशी
हमेशा के लिए छा जाती है
कोई रिश्ता न सही राबता
हम दोनों के बीच ज़रूर है
उन रिश्तों से ज़्यदा सुकून
देता है तेरा-मेरा अनकहा रिश्ता।