खामोश दिल...
खामोश दिल...
सोचती हूं अक्सर जज्बातों को दिल में रहने दूं
कुछ ठहरकर ख्याल आया
इन एहसासों को शब्दों में पिरों दूं....
पर क्या इन्हें कुछ लफ्जों में बयां करुं...
या दिल में उमड़ते भावों को कुछ चंद पन्नौं में उड़ेल दूं....
क्या इतना आसान है किसी के मन को टटोलना
मुश्किल सा लगता है बेशक जवाबों को ढूंढना...
आज मेरा मन खुद से ही सवाल कर रहा
कैसी कश्मकश है खुद को खुद में ही तलाश कर रहा...
क्यों आज दुविधा में मन भटक रहा
क्यों आज जज्बातों को शब्दों का साथ मिलता नहीं
क्यों आज उलझती जा रही मैं एक पहेली में...
दिल को खुद ही समझाया तो लगा जैसे
कभी कभी ''दिल खामोशी'' से बोल जाती है...
चुपके-चुपके हौले-हौले एहसासों को ये मन कह गया
दिल की धड़कनों को दिल ने सुन लिया
ये इश्क की गहराई है जो बिन बोले भी हर भावों को समझा गया।