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प्रवीन शर्मा

Tragedy Classics

4  

प्रवीन शर्मा

Tragedy Classics

खाली रास्ता

खाली रास्ता

1 min
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एक खाली रास्ता है बस दो कदम मेरे

तन्हा सफर के सांझ और सवेरे

खुद की चाय खुद बनाई खुद पी ली आज भी

पहचान वाले अनजान है सब, ये क्या किया बुढ़ापे मेरे


बहुत कहानियां है, मगर सुनने वाला कोई नही

रूठ कर रोने रुलाने वाला कोई नही

भीड़ है परछाइयों की चश्मा हटाने के बाद हर तरफ

परछाइयों से मुझे आवाज लगाने वाला कोई नही


साथ ना छोड़ने के वादे वाले सब वादा तोड़ गए

मेरे अपनो के अपने भी अब तो मुहँ मोड़ गए

पेड़ था कभी मैं, ठूंठ सा गड़ा हूँ अब

विरासत मेरी लेकर वो मुझे पीछे छोड़ गए


बुढ़ापा बुरा आपा है तो भी मेरा कुबूल मुझे

कांपते हाथ, झुर्री, कमजोर नजर सब मंजूर मुझे

मलाल है तो बस अपनो संग गुजरती तो अच्छा होता

बाद मरने के चार हो या दो कांधे, सब फिजूल मुझे


खैर छोड़ो इन बातों में अब क्या रहा मेरा

सीटी लग गई कुकर में, खाना बन गया मेरा

आज का जिंदा रहने का इंतजाम हो ही गया

फिर से खाली रास्ता, और आज का पहला कदम मेरा।


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