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Satyendra Gupta

Inspirational

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Satyendra Gupta

Inspirational

कचरों में सिसकती हुई बचपन

कचरों में सिसकती हुई बचपन

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मैं कौन सा बच्चा हूं

बुरा हूं कि अच्छा हूं,

नही जानता की मैं

समाज की भी हिस्सा हूं।


जब आंख खोला तो 

कचरे में पाया अपने आप को,

सिसकती रही मेरी रूह

और नही जान पाया अपने बाप को ।।


मुझे कोई दुलार करनेवाला नही था

मुझे कोई प्यार करने वाला नही था

क्या कुसुर था मेरा ईश्वर की

मुझे जानने वाला कोई नहीं था ।


मां क्या होती है 

मुझे नहीं पता

बाप क्या होता है

मुझे नहीं पता


भाई क्या होता है

मुझे नहीं पता

बहन क्या होता है

मुझे नहीं पता


लेकिन पता है मुझे

मेरी लाचारी

लेकिन पता है मुझे

मेरी बेकरी

लेकिन पता है मुझे


मेरे हरेक दिन की आंसू

जिसे कोई पोछता नही है।

पता है मुझे मेरा भूख

जिस भूख को कोई मिटाता नही है।

पता है मुझे मेरा दुख 

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p>जिस दुख को कोई हरता नही है।।


क्या मेरे प्रति समाज की कोई जिम्मेवारी नही है

क्या मेरी प्रति समाज की कोई सहानुभूति नहीं है

मैने भी इसी धरती पे जन्म लिया है

क्या मेरे प्रति देश का मौलिक अधिकार नही है।


कोई तो मुझे अपना लो

कोई तो सीने से लगा लो

मैं भी अच्छी जिंदगी जीना चाहता हु

कोई तो मुझे पढ़ा लिखा दो।


कचरों से प्लास्टिक और बोतल निकालना

और उसे बेचकर अपना पेट भरना

क्या यही मेरी जिम्मेवारी है।

फटे कपड़े और फटेहाल रहना

क्या यही मेरी कुसुरवारी है।


समाज में रहने वालो 

ऊंची ऊंची बातें करने वालो

मुझे भी अपने समाज का

एक हिस्सा बना लो

मेरे बदनसीबी को 

एक किस्सा बना लो।


 मैं भी बड़ा आदमी बनना चाहता हूँ

कुछ करके दिखाना चाहता हूँ

रोहित जी कुछ करके दिखाए ना

लोगो को समझाइए ना।


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