कभी कभी
कभी कभी
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(1)
कभी-कभी
मन बावरा सोचता है
माटी (तन) का पिंजरा तोड़ (छोड़)
उड़ चलें अनंत आकाश में..!!
(2)
कभी-कभी
कल्पनिक भावों के
चंचल पँछी
शब्दों के सघन
जाल में आने से पहले ही
मन के अनंत आकाश से
विलुप्त हो जाते हैं..!