कब थमेगा मंजर
कब थमेगा मंजर
देखती रही ये आँखे समुन्दर लाशों के ढेर का
हाथ मलते रह गए जो रखते थे सीना शेर का
रुँध गयी ये जमीं रुष्ट हो प्रकृति ने दी ललकार
स्वजनों की मौत देख हो रहा बेबस पूरा संसार
जिन्हें देखे बिना न उतरती थी हलक से पानी की धार
आज उन्ही के अंतिम दर्शन को हो रहे सभी लाचार
तकती हैं निग़ाहें कब थमेगा मंजर अन्धकार का
मौत के सैलाब का चहुँ और उठे चित्कार का ।