कब हुआ
कब हुआ
आदमी आदमी ही रहा इंसान कब हुआ
इधर बस्ती थी पहले श्मशान कब हुआ।
एक आस्था ने ही बांधा था एक धागे में
एक रस्ते का पत्थर भगवान कब हुआ।
बहता खून देख के खून तो खौला होगा
अपना ही खून बहा के हैरान कब हुआ।
मेरे घर का रास्ता मालूम दुश्मन को भी
सब अपने तो रास्ते का भान कब हुआ।
जिंदगी खोजते जिंदगी जी गया 'सिंधवाल'
तो फिर पता चला कि परेशान कब हुआ।