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निशान्त "स्नेहाकांक्षी"

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4.4  

निशान्त "स्नेहाकांक्षी"

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काव्य रात का..!

काव्य रात का..!

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रात के ये पल बचा कर

खुद को खुद से ही मिला

कर

गाना शब्दों का बना कर

गीत सुंदर लिख रहा हूँ।


रजनी की भीनी खुशबुओं से

दीप की ज्वाला चुराकर

एहसास इनमें पिरो रहा हूँ

काव्य सुंदर रच रहा हूँ ।


करवटें पल पल बदलकर

भाव सपनों से रंग रहा हूँ

रात चुप है चाँदनी भी  

पर मैं शोर काव्य में भर

रहा हूँ ।


कह लो तो कविता लिख

रहा हूँ

या फिर ख़्वाब अपने बुन

रहा हूँ

मैं छंद मुक्तक गढ़ रहा हूँ

गीत सुंदर लिख रहा हूँ ।।


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