काश मैं..!
काश मैं..!
अरे.. !
देखो ना
उस पिंजरे में
वो मिठठू कुछ बोल रहा है
शायद कुछ समझा रहा ह
और ...
ऊधर देखो
वो जंजीरों में बँधा
अपना मोती भी
कुछ कहना चाहता है
बस यही तो दुःख है
हम इन्हें पाल लेते हैं
पर समझ नहीं पाते
काश..!
उसके दुःख को भी कोई समझ पाता
अकेलेपन का दुःख
अपने से बेहतर मानता है
शायद इसलिये कि
इन्हें समय समय पर
सब देख जाते हैं
पालतू जानवर समझ नहीं
अपने घर के सदस्य सरीखे
पर उसे..
उसे कौन है पूछने वाला
इसलिये तो उसने कहा था
काश..
मैं कुत्ता होता
बेशक़ जंजीरों से बँधा रहता
पर,
यूँ बेघर /
बेबस /
बेसहारा तो ना होता
मेरे वक़्त - बे- वक़्त भौकने पर
सब दौड़े आते मुझे देखने
और मैं..
कहते कहते गला भर्रा गया था उसका
शायद
आँखें भी भर आई होंगी।