काश (log 6)
काश (log 6)
कुछ तो हुनर होगा जलते अंगारों से निकलते धुएँ मे
हर उस तलब का, जो जीवन को राख मे तब्दील करे
प्यार मे टूटे दिल का तो बहाना ही था कश लेने का
गुफ़्तगू दीवारों से कब तक कर सकेगा कोई, सोचो ?
दूर कही धड़कनों की बीती यादो का गुज़रना, मोह होगा,
पूरा होगा या नहीं ? कटु सत्य को कोई भुला नहीं सकता !

