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Brijlala Rohan

Action Classics Inspirational

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Brijlala Rohan

Action Classics Inspirational

काश! लौट आते बचपन के वो दिन

काश! लौट आते बचपन के वो दिन

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काश लौट आते वो बचपन के वो दिन !

वो काग़ज़ की कस्ती, वो मिट्टी का घरौंदा 

वो गुड़िया की शादी, वो मस्ती का डेरा 

वो गाँव की बुढ़िया फूआ के साथ की शरारत !


 वो लड़ना- झगड़ना, फिर साथ में ठहरना 

वो लुका- छुपी का खेल, वो पकड़म- पकड़ाई!

वो गिल्ली- डंडे का खेल, वो क्रिकेट की कहानी 

वो आम- जामुन के पेड़ पे चढ़ना !

सब मस्तिष्क में स्मृति बन चलचित्र की भाँति चलने लगते हैं।


हाँ! कुछ ऐसे थे मेरे बचपन के दिन !

न खाने की चिंता, न कमाने की चिंता&nb

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फिर शाम का वक़्त और माँ का डंडा,

मेरी स्वागत के लिए तैयार रहता था !

लेकिन बस डराने के लिए ही !


क्यूकि जब मैं शाम को घर लौटता तो बहाने बनाकर

उनसे चिपक जाता, 

तब वो भी पिघल ही जाती!

और बोलती कल से ऐसा नहीं करोगे न!

कान पकड़ो !


मैं पकड़ भी लेता कान लेकिन मन - ही- मन रहता ध्यान

कि लगता है आज शाम बहुत जल्दी हो गयी थी !

और अगले दिन से और देर से घर पहुंचना !

हाँ ! तो कुछ ऐसे थे मेरे बचपन के दिन !

काश ! लौट आते बचपन के वो दिन !


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