काश! लौट आते बचपन के वो दिन
काश! लौट आते बचपन के वो दिन
काश लौट आते वो बचपन के वो दिन !
वो काग़ज़ की कस्ती, वो मिट्टी का घरौंदा
वो गुड़िया की शादी, वो मस्ती का डेरा
वो गाँव की बुढ़िया फूआ के साथ की शरारत !
वो लड़ना- झगड़ना, फिर साथ में ठहरना
वो लुका- छुपी का खेल, वो पकड़म- पकड़ाई!
वो गिल्ली- डंडे का खेल, वो क्रिकेट की कहानी
वो आम- जामुन के पेड़ पे चढ़ना !
सब मस्तिष्क में स्मृति बन चलचित्र की भाँति चलने लगते हैं।
हाँ! कुछ ऐसे थे मेरे बचपन के दिन !
न खाने की चिंता, न कमाने की चिंता&nb
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फिर शाम का वक़्त और माँ का डंडा,
मेरी स्वागत के लिए तैयार रहता था !
लेकिन बस डराने के लिए ही !
क्यूकि जब मैं शाम को घर लौटता तो बहाने बनाकर
उनसे चिपक जाता,
तब वो भी पिघल ही जाती!
और बोलती कल से ऐसा नहीं करोगे न!
कान पकड़ो !
मैं पकड़ भी लेता कान लेकिन मन - ही- मन रहता ध्यान
कि लगता है आज शाम बहुत जल्दी हो गयी थी !
और अगले दिन से और देर से घर पहुंचना !
हाँ ! तो कुछ ऐसे थे मेरे बचपन के दिन !
काश ! लौट आते बचपन के वो दिन !