कालीघाट चित्रकला
कालीघाट चित्रकला
ब्रिटिश शासन के दौरान कालीघाट पेंटिंग को मिली थी प्रसिद्धि,
उन्नीसवीं सदी कोलकाता में पहली बार इस कला में आई वृद्धि।
कोलकाता कालीघाट मंदिर आसपास चित्रित करते कलाकार,
कालीघाट चित्रकला नाम मिला इसी से जाने जिसे पूरा संसार।
एक बात बड़ी है दिलचस्प कोलकाता कालीघाट चित्रकला की,
चित्र निर्माण की प्रक्रिया में, भागीदारी रहती संपूर्ण परिवार की।
अठारवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में बाबू संस्कृति जब हुई प्रचलित,
दर्शाया जाता जिसमें बाबूओं को उच्च श्रेणी अनुसार परिष्कृत।
तेल में भीगे हुए बालों के साथ बाबुओं को किया जाता चित्रित,
मजाकिया अंदाज में वेशभूषा को, दिखाया जाता बड़ा विचित्र।
राजसी कुर्सी हाथ में हुक्का खुद के किरदार से अलग ही छवि,
बन जाए उपहास का पात्र भले पर करनी सिर्फ अपने मन की।
धोती की क्रीज हाथ में पकड़े और करते हुए राजसी खानपान,
चित्र के पीछे छुपाते बाबू लोग अपनी कमियांँ अपनी पहचान।
बाबू संस्कृति कालीघाट चित्रकला में होने लगा था जब चर्चित,
कालीघाट सामाजिक तौर पे महत्वपूर्ण रूप में हुआ विकसित।