जज़्बात
जज़्बात
काश ! तुम होते, तो होती और बात।
लेकिन नहीं तुम, है न ये गलत बात।
तन्हा-तन्हा सा हूँ कहने को दुनिया साथ।
मस्त सब अपने में, और अपनों के साथ।
बेबसी में हम कैसे, काटते हैं सारी रात।
लेकिन न समझ सके दिल के वो जज़्बात।
हे प्रिय तुम भूल गए, शायद हरेक बात।
क्या भूले प्यार भरी, बातों की बरसात।
देख लिया है जब से, खुश हैं तेरे मिज़ाज।
लगता है बची नहीं, तुझे मेरी ऐहतियाज ।
लो करली ख़ामोशी आज से आत्मसात।
बेफ़िक्र रहो आपको मिल गयी निज़ात।