जय हिंद
जय हिंद
लहलहाती हरियाली कहे
गौरव गाथा गुनगुनाते रहें ।
हिमालय सदा ऊंचा रहे।
यह सिलसिला चलता रहे
निरंकुशों पर अंकुश रहे।
कोई रक्त न कभी बागी बने।
तिरंगे में न सिलवटें दिखे।
बाती, बिन तेल न रहे।
यौवन शौर्य से सिंचित रहे।
पराक्रम से न किंचित भय रहे।
छतें सोलर पैनल से सजे।
हरियाली की चादर बुने।
इरादों में वादों की महक रहे।
ईमान की सांसे चलती रहे।
हर जख्म की खुद ही मरहम बने।
कृत्रिमता का न कहीं वर्चस्व रहे।
हर दिन शुभ दिन रहे।
सुकून शांति से जयहिंद कहें।