जूते
जूते
चलो घर की तरफ़ चलें तेज़ कदमों से
मैं नहीं उतरना चाहता
नहीं छिटकना चाहता
बीच बाज़ार तुमसे
घर की ड्योढ़ी से कर आया था मैं
तुम्हारे साथ लौटने का वादा
पर इन दिनों
घर पहुँचने की हड़बड़ी हो जाती है
जाने कब कहाँ गड़बड़ हो जाए
उधर तुम्हारा बेटा
राह देखे
कि आज तो बैठ ही जाएँगे
उसके कदम
मुझ में फिटमफाट
और हम न लौट पाए तो
हो सकता है
शिनाख़्त भी न हो पाए
सैकड़ों-हज़ारों में
फिर कौन भरोसा करेगा हम पर
कि कदमों को ले जाने वाले
शाम ढले ले भी
आते हैं सही सलामत।