जुमला सरकार
जुमला सरकार
चुनाव याने लोक-लुभावन वादों का गुलदस्ता,
वादों का दूर-दूर तक हकिकत से नहीं कोई वास्ता।
चुनाव के बाद चुनावी बादें बन जाते हैं जुमला,
ठगा सा महसूस करता राजा बनाने वाला मतदाता।
ऐसा नेता, संविधान के मुल भावना को कुचलता,
संविधान कि दुहाई देकर संविधान की खिल्ली उडता।
देशा की सर्वोच्च पंचायत में ऐसे-वैसे कानुन लाता,
संविधान प्रस्तावना को ही संसद में शर्मसार करता।
देश की मिश्रित अर्थव्यवस्ता जडसे करके ध्वस्त,
पुंजीपतियों की पुंजी-अर्थव्यवस्ता को अपनाता।
संविधान के मुल आधार को भ्रष्ट-नष्ट करता,
आम जनता को गरिबी कि सागर में ढकेलता।
कुल इकतीस प्रतिक्षत वोटवाली पार्टी,
समस्त उनहत्तर प्रतिक्षतवालों पर राज करती।
जाती, भाषा और धर्म के नाम पर करती राजनीति,
देशवासीओं को आपस में नफरत के आग ढकेलती।
मानो यहि विकास कि नाप की सिढी हैं,
इसी के बलबुते पर अगला चुनाव जीतता हैं।
जो ईविएम चुनावी मशिन को विकसित देशोंने नकारा हैं,
उसी चुनावी मशिन का ढोल पिटकर हारे हुये चुनाव जीतते हैं।
ऐसे चुनवी व्यवस्था को अपनाकर,
हम लोकतंत्र का भद्दा मजाक उडाते हैं।
ऐसी चुनाव प्रणाली देखकर दुनिया हम पर हसती हैं।
लेकिन षड्यंत्रकारी इसको अपना गौरव समझते हैं