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Madhu Gupta

Abstract Inspirational

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Madhu Gupta

Abstract Inspirational

" जर्जर होती कविता ये "

" जर्जर होती कविता ये "

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जर्जर होती कविता ये

जर्जर ही रह जायेंगी

सागर में उठती लहरों सी

क्या साहिल से मिल पाएगी

या तूफ़ानों में कश्ती माझी सी

बीच भंवर फंस जाएगी 

जर्जर होती कविता ये

जर्ज़र ही रह जायेंगी ll

ऊबड़ खाबड़ रास्तों पर

क्या चल कर मंज़िल पाएगी

या खंडर होते मकानों सी

बिख़री सी रह जायेगी

जर्जर होती कविता ये

जर्जर ही रह जायेगी ll

चट्टानों में आग लगी सी

क्या पार उसे कर पाएगी

या सारे शब्द इकट्ठे करके वो

भस्म वही हो जायेगी

जर्जर होती कविता ये

जर्जर ही रह जायेगी ll


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