जंजीर (दोहे)
जंजीर (दोहे)
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धैर्य संग विश्वास की,डोरी हो जब हाथ।
पाँव बँधी जंजीर भी,देती है तब साथ।।(1)
भोली-भाली बालिका,नभ में चाहे ठाँव।
उड़ने को आतुर हुई ,भूली अपना गाँव।।(2)
आज सकल संसार में,नारी की पहचान।
खूँटे में फिर भी बँधी,सहती है अपमान।।(3)
कठिन डगर पर चल रही,मन में हैं ज़ज्बात।
आगे बढ़ने की ललक, सुनती सब की बात।।(4)
रिश्तों को संभालती, बेटी बहता नीर।
उड़नें दें हम "पूर्णिमा ", मत बाँधें जंजीर।।(5)