जंगल के रखवाले आदिवासी
जंगल के रखवाले आदिवासी
एक ओर भीड़ से भरा शहर है,
दूसरी ओर तन्हा पड़े जंगल है,
उस तनहाई में कोई रहता है,
उन जंगलों में भी कोई जागता सोता है,
वो हमसे थोड़े अलग थोड़े मासूम है,
वो हमसे काफी दूर है,
पर प्रकृति के बेहद करीब है,
प्रकृति को वो पूजते है,
तारों की छाँव में वो रहते है,
बाहरी लोगों को देख कभी कभी वो डर जाते है,
खाना वो मिट्टी के बर्तनों में खाया करते है,
दुनियादारी की सोच से अभी वो अनजान है,
पर अगर उन्हें मिले मौका तो रच सकते इतिहास है,
समाज में अपनी वो एक पहचान बनाना चाहते है,
जंगलों के बाहर की दुनिया को वो भी देखना चाहते है,
जंगल हम सब ने देखे,
पर उनके रखवालों को नहीं देखा है,
थोड़े सम्मान के हकदार वो भी है,
जिन्होंने कभी बाहरी दुनिया को नहीं देखा है,
तन पर पूरे कपड़े नहीं पर तन की सुरक्षा करना वो जानते है,
हमारी भाषा ना समझ सके पर प्यार को बोली वो समझते है,
जंगल इनके घर है,
ना उजाड़ो ये हरियाली ये पेड़ किसी के घर की छत है,
पंछी के गीतों में बारिश आने की खबर उन्हें मिल जाती है,
आदिवासी की कहानी क्यों बस किताबों में बन्द रह जाती है,
इतना लालची ना बन बन्दे कुदरत भी गुस्सा दिखाती है,
एक प्राकृतिक आपदा सब तबाह कर जाती है,
विकास की अंधी दौड़ में सब दौड़ रहे है,
जंगल उजाड़ इनकी पहचान छीन कर हम महान बन रहे है,
इस शोर में इनकी आवाज किसी ने सूनी नहीं,
इनके रास्तों को मंज़िल आज तक मिली ही नहीं,