जलना मंजूर था
जलना मंजूर था
मुझे ज़रा सी ईर्ष्या हुई,
जब उसने मुझे छोड़ किसी और से बात की,
ढूंढता रहा उससे बात करने के मौके,
उसने फिर भी मेरी परवाह न की।
इन्तिज़ार में बेहाल देखता रहा उसकी राह,
नजाने वो वहा से कब चली गई,
ढूंढ़ने पर उसे,
उसकी परछाई भी मुँह फेर गई।
अब क्या करता,
अकेला तो था अब तन्हा भी हो गया,
उसके इन्तिज़ार में,
में खुद को भी भूल गया।
किये कई प्रयास की उसकी
एक झलक मिल जाए,
पर उसे ना मिलना ही मंजूर था,
करता तो था इश्क़ उस से,
पर उसे मुझे जलाना ही मंजूर था।
कई हदें पार की उसकी एक हँसी के लिए,
पर उसे ना हँसना मंजूर था,
दूसरों को दिखाने खातिर,
उस से मुझे अंदर से मारना मंजूर था।
मैं तो ठहरा एक सीधा प्रेमी,
मुझे तो उसे प्यार करना मंजूर था,
कई दीवाने थे उसके,
मैं भी उनमें से एक जिसे जलना मंजूर था ।