जिन्दगी
जिन्दगी
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जिन्दगी क्यों? प्रति पल,
प्रतिदिन दिल को तेरा
इंतजार सा है।
पर ये भी सत्य है जिन्दगी
अब हमसफर नहीं है तू
फिर भी किसी अनजान,
मंज़िल पर कुछ यूँ
तेरे मिलन का धुँधला सा
अदृश्य ऐतबार सा है।
चाहत है तुझे पाने के लिए,
बेचैन सी तड़प रही हूं
और यादें टूटती सी, आशा को
खींचने का यत्न कर रही है,
जिन्दगी को मात्र स्वप्न सा,
अधूरा समझ बुद्धू दिल
क्यों बेकरार सा है।