ज़िन्दगी
ज़िन्दगी
ज़िन्दगी इक बहता दरिया है
इस दरिये में तैरती हम सब हैं मछलियां
ज़िन्दगी इक फ़ूल है
हम ख़ुश्बू हैं जिसकी, महकता जिससे ये गुलिस्तां
ज़िन्दगी इक नग़मा है
गुनगुनाता हर कोई इसे , जो आया यहाँ
ज़िन्दगी इक कश्मकश है
लड़ रह खुद ही से खुद देखो इंसां
ज़िन्दगी इक ख़्वाब है
पल में टूटे , पल में बनते कारवां
ज़िन्दगी तो बेवफ़ा है
छोड़ जाती है दामन, रह जाये बस दास्तां।