जिंदगी को बस ऐसे ही जियो
जिंदगी को बस ऐसे ही जियो
इक अजीब सी उलझी हुई,
पहेली है ये ज़िंदगी,
कभी सबके साथ तो कभी,
निरी अकेली है ये ज़िंदगी,
अगर देती भी है कुछ,
तो कुछ ले भी लेती है,
जन्नत सी लगती है कभी,
तो कभी जहन्नुम बन जाती है,
कभी गैरों को करीब लाती है,
तो कभी अपनों को दूर कर जाती है,
कभी अजनबी चेहरे आंखों में बस जाते हैं,
कभी अपने भी यहां नज़र से उतर जाते हैं,
कभी ये बेहद परेशान करती है,
कभी होंठों पर मुस्कान बन उभरती है,
ज़िंदगी महज़ सांसों का खेल नहीं,
ज़िंदगी फकत दिलों का मेल नहीं,
ज़िंदगी क्यों समझ में आती नहीं,
ये क्यों कभी कुछ समझाती नहीं,
इससे मिले हुए ज़ख्मों को,
बस दिन रात सिये जाता हूं,
कभी खुशियों के जाम,
तो कभी ज़हर के घूंट पीये जाता हूं,
मैं ज़िंदगी को बस यूं ही,
बेवजह जीए जाता हूं..!!