ज़िंदगी का खेल
ज़िंदगी का खेल
कुछ लोग अक्ल के दुश्मन होते,
जो सदैव औंधी खोपड़ी के होते।
चाहे इधर का उधर भी हो जाना,
ऐसे लोगों से आँख हमनें बचाना।
सदा जिंदगी का खेल तो कम खेलते,
बना-बनाया खेल बिगाड़ना ख़ूब आता।
ऐसे लोग सदा जान को रोते रहते,
कभी भी टस से मस तक ना होते।
जिंदगी का खेल भी तो है ना एक जंग,
जीते-हारे तो क्या हुआ ये खेल का अंग।