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Vijay Kumar उपनाम "साखी"

Inspirational

4.5  

Vijay Kumar उपनाम "साखी"

Inspirational

"जिंदगी का कैसा मुकाम"

"जिंदगी का कैसा मुकाम"

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जिंदगी का यह कैसा मुकाम है

न कोई सुबह,न कोई शाम है

बीच भंवर में अटक गया साखी,

अपनो से मिला ऐसा ईनाम है

फूट गया है,भीतर का दरिया,

मिला हमे कुछ ऐसा इल्जाम है

आंसू बहकर सूख गये तमाम है

जिंदगी का यह कैसा मुकाम है

न कोई सुबह,न कोई शाम है.


सबने भोला देखकर दबाया,

जैसे में कोई पिलपिला आम है

जिन के लिये में चला कोसो,

वो ही कहते,तू पागल नाम है

जिस पर हम भरोसा करते है,

वही शख्स निकला बेईमान है

हर रिश्ते को तहेदिल से निभाया

जैसे मेरी गरीबी का वक्त आया,

सब देने लगे गाली आठोयाम है

जिंदगी का यह कैसा मुकाम है.


न कोई सुबह,न कोई शाम है

मदद करना ही गुनाह हो गया

मदद कर,यूँही बदनाम हो गया

मददलेनेवाला हुआ फरार है

मददगार हुआ टूटा ख्वाब है

न फोन उठाना,न सच बताना,

सबने दिया दगा लाजवाब है

किसी को बता न सकते है

किसी को जता न सकते है

रिश्तेदारों से मिला वो श्राप है

भलाई होने लगी अब पाप है

जिंदगी का यह कैसा मुकाम है.


न कोई सुबह,न कोई शाम है

अब तो हम अकेले ही जीते है

अब तो हम अकेले ही पीते है

विश्वास से उठा मेरा विश्वास है

दुनिया मिली ऐसी धोखेबाज है

पानी को समझते अब शराब है

फिर भी हम हिम्मत न हारेंगे,

हर गम को हौंसले से मारेंगे,

खुद को बनाएंगे एक गुलाब है

जिंदगी का मिले कैसा मुकाम है

बनकर उड़ेंगे फ़लक में बाज है

हम लड़ेंगे,हम तो आगे बढ़ेंगे,

हम जलेंगे खुद के बूते चमकेंगे,

जैसे अंधेरे बीच होता चराग है.


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