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ARCHANNAA MISHRAA

Inspirational

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ARCHANNAA MISHRAA

Inspirational

जिज्ञासा

जिज्ञासा

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स्याह सी सुर्ख़ रात में 

कहीं हलचल होती है

जुगनू की रोशनी 

पत्तों की सरसराहट 

बेचैनी पसरी हें दूर तलक 

मृग तृष्णा में मन भटक रहा है

तलाश हे जिसकी अभी वो 

रास्ता बड़ा लम्बा हे 

मन क्यूँ उदास हे 

एक लम्बी फ़रियाद है

सूनी आँखो की वो शोख़ियाँ 

पैरों की पेजनियाँ , 

वो घुंगरू की आवाज़ , वो पहले सा अल्हड़पन 

सबकी तलाश है

मौन की भी आवाज़ें होती है

आज शब्द भी शांत है 

ढूँढ तो रही हूँ 

हर जगह 

मंदिर में , मस्जिद में 

मरघट में ,देवालय में 

सड़क किनारे सुनसान जंगलों में 

चीत्कार रहा मन मेरा 

ढूँढ रही हूँ 

जग जग जिसको

नन्ही नन्ही गलियों में 

जहाँ संकरा होता जाता हे रास्ता 

दूर तलक सिर्फ़ अंधकार है

थोड़ा सा ठहराव चाहिए 

इस जीवन की उहापोह में 

मन जिसकी तलाश में

भटक रहा 

वो मेरे मन ही व्यापा 

अंतर्मन को जब टटोला 

वो छुप के बैठा था वही 

मुस्करा कर मुझसे बोला 

आख़िर ढूँढ ही लिया मुझको। 

में तत्व ज्ञान हूँ 

परम ज्ञान हूँ

जो साध सके मुझको

में उसके साथ हूँ

जिज्ञासा बड़ी थी तुम्हें जानने की 

कहा कहाँ कितने सवाल

 मन ने किए कितने बार 

जो खुद को ही खुद से मिलवाया 

तब जाकर परम चेतना का बोध है आया ।


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