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Manjeet Kaur

Tragedy

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Manjeet Kaur

Tragedy

जीवनदात्री

जीवनदात्री

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वर्षों पहले ये प्रकृति

हरित वस्त्र धारण करके

फूलों की माला से सँवरी

माथे पर बिंदिया सजाये 

माँग में अमूल्य मोती भरे

हर जीव को सजाती, सँवारती

सुहागन लगती ये धरती माँ


आज अचानक नज़र पडी जो

न मोती, न फूल

न बिंदिया, न श्रृंगार

बुझी-बुझी सी, डरी-डरी सी

गहन विचारों में डूबी सी

श्वेत वस्त्र में इक विधवा सी


विस्मित हो पूछा मैंने, ये क्या

कब हुआ, कैसे हुआ, ये रूप खंडित

बोली आँखों में आँसू भरकर

विलासी, स्वार्थी है यह मानव

पैशाचिक है वृत्ति इसकी

देख न पाया, दुर्दशा मेरी

सुन न पाया क्रंदन मेरा

समझ न पाया, उसका जीवन

मुझसे कुछ अलग नहीं

अक्षम्य है अपराध उसका


आँखों में उमडा मेरी सैलाब

कहा- तुम हो आराध्य हमारी

क्षमा करो, हे स्नेहमयी

देती हूँ मैं वचन तुम्हें

सम्भालेंगे, सँवारेंगे, सजायेंगे तुम्हें

ये कोई अहसान न तुम पर

अहसान होगा यह खुद हम पर

स्वस्थ रहो, खुश रहो, आबाद रहो

हे धरती माँ, हे प्रकृति माँ

हे धरती माँ, हे प्रकृति माँ.


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