जीवन शैली
जीवन शैली
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झरोखे कब बंद हुए जाने क्या पता
होले होले जिंदगी से जीवन,
कैसे दूर चला गया पता ही न चला।
सपने भी बोझ बन गए,
क्यूँ कर कान बजने लग गए।
रिश्तों में बेरुखियाँ,
शक का पहाड़ चढ़ाने लगी,
देखते ही देखते,
तिल का ताड़ बनाने लगी।
फासले बढ़े
हर सीधी राह को टेढ़ा-मेढ़ा कर रहे,
जीवन को अर्थहीन बना रहे।
अब जरूरत है तो बस रिश्तों को
आईना दिखाने की,
नामुमकिन को मुमकिन बनाने की,
हर प्रश्न चिन्ह को हटाने की।
तूफान में कश्ती डोलती जरूर है
पर इरादों से संभलती भी है।
बादलों की गड़गड़ाहट गूंजती जरूर है I
लेकिन खुशियों की बारिश,
जीवन में रस घोलती भी है।