जीवन रूपी यात्रा।
जीवन रूपी यात्रा।
हम राही हैं इस जीवन के, इसमें में ही यात्रा करनी है।
संसार रूपी "वटवृक्ष "में हमारा नहीं कोई ठिकाना है।।
कब होगी पूरी यात्रा, इसका किसी को पता नहीं।
उलझन भरे इस भव जाल में, हमको मंजिल पाना है।।
भीड़ भरी इस दुनिया में, कुछ करके हमको दिखाना है।
भूत -भविष्य की बातों को छोड़ो, वर्तमान में ही जीना है।।
क्या खोया ,क्या पाया, यह तो सबके साथ ही होना है।
मनुष्य जीवन का क्या उद्देश है, इस पर दृष्टि डालना है।।
इस शरीर में ही ब्रह्म समाया है, इसका किसी को भान नहीं।
जाकर पहले तुम उससे मिलो ,जिसने इसको जाना है।।
ज्ञान होगा तभी तुमको ,जब विवेक जागृत होता है ।
बुद्धि तो सबको है मिलती ,आत्मदर्शन तो एक खजाना है।।
उठो ,जागो हे !मानव, अभी भी कुछ भी नहीं बिगड़ा है ।
आत्मा तो अजर -अमर है "नीरज",किसी सद्गुरु के पास जाना है।।