जीवन किताब
जीवन किताब
अपने अरमानों के पीछे
वह दौड़ चला
इसी कशमकश में
अपनों को छोड़ चला
अनमोल थे हजारों रिश्तों के
मोती दामन में पिरोए
उन धागों को
बरबस में तोड़ चला
वह सोचता रहा
देखकर पीछे की दुनियां
शर्मिंदगी से अपना
रास्ता ही मोड़ चला
जिंदगी भी अजीब
किताब है दोस्तों
अंतिम हिसाब में
उसके जीवन कर्म के एक एक
पन्नों को जोड़ चला।