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Surendra kumar singh

Abstract

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Surendra kumar singh

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जीवन है

जीवन है

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जीवन है

यात्रा है

जब कभी ठहरने का मन होता है

यादें सरपट दौड़ने लगती हैं

मसलन कल शाम मैं

शाम के समुंदर में 

मात्रगस्ती कर रहा था

खुश तो था

आनंदित भी था

कि शाम के समुंदर की एक लहर ने 

उछाल दिया

सुबह के किनारे

और इतनी सी उछाल में 

रात कैद हो गई आंख में 

दुनिया सिमट गई

जेब में।

अब जब सुबह है

तो मैं तलाश रहा हूँ 

ऐसा कोई लम्हा

जो रात में नहीं था।


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