जीवन एक मोहत्सव
जीवन एक मोहत्सव


अंधेरे के बगैर दियों की, खुबसूरती का अस्तित्व नहीं
संघर्ष के श्रृंगार बिन, परिपूर्ण कोई व्यक्तिव नहीं
तो कठिनाइयों से क्यू कतराना, वह अवसर सुनहरा सबको हैं
लड़ते रहना बस में हैं, परिणाम की खबर बस रब को हैं
हृदय चीर के अपना, पंखुड़ियों के मोती माला बुनते
खुद को अर्पण करने, बस मंदिर का द्वार चुनते
वह मखमल कुछ चुभती हैं, उसे कांटों से जो सजाया हैं
मगर मेंदी से वह जख्म हैं, जिन्होंने खिलना सिखाया हैं
यह रंगोली जीवनमंत्र कि, आखिर में निशान मिट जाता हैं
कितनी भी संभाल के रखो सांसे, वक्त आने पे दम टूट जाता हैं
तो क्यू न रंगों की मौजूदगी में, हर लम्हा अपना रंगीन करे
सजा के आंगन जीवन का, वजूद खुदा के आधीन करे
जिंदगी खेल रात दिन का, यह चक्र सदा चलता रहेगा
सूरज चांद तारों की चमक में, उत्सव यह सजता रहेगा
दुःख श्राप कहा वरदान हैं, यह अंधेरा रोशन सा दीपोत्सव
कुछ मीठा कुछ कड़वा वास्तव,यह जीवन जीवनभर का महोत्सव।