जीवदया
जीवदया
एहसासों के परिंदे को मुखर कर इंसान जीवदया के पथ पर चलकर कर्म करते लिख अपना इतिहास..
निर्ममता से भरे पड़े हर मन के घट में विष भरे, गूँगे पशु के प्रति क्यूँ ममत्व का
आलाप न जगे..
मानस सागर में लहरे उठती ही नहीं स्वार्थी हो चली दिमाग की गली संकरी होते सिकुड़ चली..
भूख की भनक जितनी हमको जलाती है उतनी ही पशु पंछियों को भी झनझनाती है..
अपने हिस्से की रोटी में से आधी उनको खिलाने में क्यूँ हथेलियाँ तंग हो जाती है..
छत पर आते पारावत को प्यार से पुचकारते उनके दाना पानी का जुगाड़ करो..
पाषाण न बनो प्रेमी बनो पालतू के प्रति आत्मिक भाव की ज्योति जगाकर जीवन अपना सार्थक करो।