जीना चाहता हूँ
जीना चाहता हूँ
ये सुकुनभरी जिंदगी जीना चाहता हूॅं।
दो घुंट मैं भी पीना चाहता हूॅं।
सुना है ये ग़म को भुला देती है।
नशामंद होनेतक झुला देती है।
जबतक पीऊंगा ये आलम रहेगा ।
ना ख़ुशी रहेगी , ना ग़म रहेगा ।
आतेजाते कहेंगे क्यों पीते है ।
उन्हें क्या पता कैसे जीते है।
शराब और ग़म का पुराना नाता है।
मंदिर जाये कोई, कोई मयखाने आता है।
मंदिर में भगवान चुपचाप बैठे है।
मयखाने में हर राज़ पर्दाफाश होते है।
ग़म को भुला देगी ऐसी कोई दवा नहीं ।
ऐसा कोई हुस्न , ऐसा कोई शबाब नहीं ।
मन बोले, तन डोले , फिर जनजन बोले ।
बोतल खोले,घूट-घूट शराब निगले।
जानू दुखदर्द की दवा ये,
जब एक जाम पिलाये
सारी बेवफाई भुलाये
मन की सारी चिंता मिटाये ।
टूटा हुआ दिल जोड़ना चाहता हूँ ।
गुजरे हुए कल को भूलना चाहता हूँ ।
कहे मुझे कोई शराब बुरी है।
आखिर यही मेरी इच्छा अधूरी है।
अब न कुछ लिखना चाहता हूँ ।
अब न कुछ सुनना चाहता हूँ ।
बस्स बेहोश होने तक पीना चाहता हूँ ।
खुद के लिये जीना चाहता हूँ ।
हा! हा! जीना चाहता हूँ ।